एक ऐसी आस
आंसू भी ज़रा घबराएं
कुछ इतना खुश मैं लगता हूं
जी रैना का भी पिघल जाए
पूरा दिन मैं जगता हूं
यह सारा ढोंग वो खुदा देखता ही नहीं
उसकी भाषा में समझा दो कोई
मैं अपनी भाषा में जो कहता हूं
कल मरने की है आस आज इसलिए मैं जिंदा रहता हूं।
-तरुण राज
©sensitiveobserver
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